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Paragraph of 20 lines on प्रार्थना का महत्व in hindi​

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प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाती है । हरएक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है । सभी धर्म-गुरुओं, ग्रंथों और संतों ने प्रार्थना पर बड़ा बल दिया है । उन्होंने प्रार्थना को मोक्ष का द्वार कहा है ।

प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की ईच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि होते हैं । प्रार्थना चुपचाप, बोलकर या अन्य किसी विधी से की जा सकती है । यह अकेले और सामूहिक, दोनों रूपों में होती है । यह ध्यान के रूप में या किसी धर्म ग्रंथ के पढ़ने के रूप में भी हो सकती है ।

प्रार्थना में माला, जाप, गुणगान पूजा संगीत आदि का सहारा लिया जाता है । बिना किसी ऐसे साधन के भी प्रार्थना की जा सकती है । प्रार्थना करने की कोई भी विधि अपनाई जा सकती है, और सभी श्रेष्ठ हैं । प्रार्थना एक तरह से परमेश्वर और भक्त के बीच बातचीत है । इस में भक्त भगवान को अपनी सारी स्थिति स्पष्ट कर देता है कुछ छिपाता नहीं ।

इसमें जितनी सच्चाई, सफाई, तन्मयता और समर्पण-भाव होगा, वह उतना ही प्रभावकारी होगी । प्रार्थना कभी भी और कहीं भी की जा सकती है, परन्तु प्रात: और सायं नियमित रूप से करना बहुत लाभदायक रहता है । प्रार्थना का स्थान भी शांत, स्वच्छ, मनोरम, और खुला होना चाहिये ।

यह ऐसा होना चाहिये कि ध्यान नहीं बंटे और जहां शोरगुल न हो । मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि इसके लिए अच्छे स्थान माने जाते हैं । प्रकृति की गोद में भी, कहीं भी, प्रार्थना करने में बड़ी सहायता मिलती हैं । प्रार्थना में मन की एकाग्रता बहुत आवश्यक है ।

इस प्रकार प्रार्थना का मनोवैज्ञाकि महत्व भी कम नहीं है । मन की शांत करने, बुद्धि को एकाग्र करने, संस्कारों को श्रेष्ठ बनाने और आत्मविश्वास प्रापत करने का यह एक अनुपम साधन है । यह एक ऐसी आध्यात्मिक क्रिया है जिसमें धैर्य, ऊर्जा, पवित्रता, चरित्र की दृढ़ता जैसे गुण विद्यमान हैं । इसके द्वारा दूसरों का भी बड़ा भला किया जा सकता है । प्रार्थना के बल पर संतों, साधुओं, पैगम्बरों, आदि ने वह सब कुछ कर दिखाया है जो असंभव लगता है ।

User Marcel Jackwerth
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